गुजराती लोकगीत में राम
संकलन : प्रो. निरंजन राज्यगुरु
प्रस्तुति : डॉ. चंदन कुमारी
1. तारा हो राम प्राण
थकी प्यारा ......
राजा दशरथ ने घेर जनम
धरीने,
पिताजीना बोल पाड़ नारा
....हो राम
राजा रावणने रणमां
रोप्यो,
विभीषणने राज
सोंपनारा हो राम.....
2. सखी! पडवे ते पंथे
चाल्या रे,
महावनना ते मारग झालया रे
सती सीता ने लखमण
रे सखी! बीजे ते मढ़ीये बिराजे रे,
एवा नदीयो तणा नीर गाजे र
राम मेली गिया रुडु राजे,
रघुपति राम रुदियामा रेजो रे ....
सखी ! त्रीजे ते वनवी झाड़ी रे,
वनफड़ मंगावे दाडी दाडी रे
सारी सोभे सीताजीनी वाडी,
रघुपति राम रुदियामा रेजो रे ....
सखी! बारशे हनुमान बडिया रे
ठेकी समंदर पार उतरिया रे,
जईने जोगमाया ने मडि....
सखी चौदशे चित्त विचारी रे,
फोजुं रीछ वानरनी सारी रे,
रामे रावण नांख्यो छे मारी,
रघुपति राम रुदियामां रेजो रे....
सखी! पूनमे परभू घेर आव्या रे,
थाड़ भरी मोतीडे तो वधाव्या रे,
माता कौशल्या ने मन भाव्यां
रघुपति राम रुदियामां रेजो रे....
3. शबरी धीरे राम
पधार्या शुं करूं मेमानी र
शुं करूं मेमानी
व्हाला शुं करूं सनमानी रे
झूंपड़ी मारी नानी व्हाला, शुं करूं मेमानी रे
चौद भुवननो बेसवा धूणनो
ढगलो कीधो, पडियामा लावी पाणी रे
....
एठा झुठा बोर हतां ई प्रभुए लीधां ताणी रे .....
धन-धन शबरी भगती तारी,
वदमां जेने बखानी रे,
एवी भगती जे करे, एने मणशे अंतरजामी रे
4. तमे पाछां रे वड़ावो
रे, राजा रावण!
जानकी रे जी ....
जानकी छे गढ़ रे लंकानो काड़....माताजी
छे गढ़ रे लंकानो काड़....
तमे पाछां रे वड़ावो रे, राजा रावण!
जानकी रे जी ....
जी रे स्वामी! हुन् रे सुती ती मारी सेजमां,
मुंने सपनुं रे लाध्युं, वाडीयु उझाडी छे
वान्दरे,
समजीए सना कीधी भेड़ी
कोट ने काँगरे भमे वान्दरा, लंका देशे बाड़
तमे पाछां रे वड़ावो रे, राजा रावण!
जानकी रे जी ....
धूड रे उड़ धूखाडवी, लंकाना मोलुं थाशे मेला