Friday, June 29, 2018

शार्प रिपोर्टर 'उत्तरप्रदेश-उत्तराखंड महाविशेषांक’


उत्तरप्रदेश-उत्तराखण्ड महाविशेषांक




(साहित्य, समाज और संस्कृति का उत्कृष्ट दस्तावेज)



 समाज के प्रति जागरूक रुख अख्तियार करने वाली शार्प रिपोर्टर पत्रिका का ‘उत्तरप्रदेश-उत्तराखंड महाविशेषांक’ (अप्रैल-मई, 2018) का विमोचन  द्विदिवसीय मीडिया समग्र मंथन (7-8 अप्रैल 2018) के राष्ट्रीय समारोह के दौरान  आजमगढ़ में भव्यता से संपन्न हुआ |
पत्रिका का यह विशेषांक नौ खंडों में विभक्त है | इनमें से आठ खंड उत्तरप्रदेश, बुन्देलखण्ड और उत्तराखंड की यथा स्थिति का सम्यक आंकलन है | यह साहित्य सहित कला-संस्कृति के सामाजिक सरोकार और प्रदेश की राजनैतिक एवं प्रशासनिक ढाँचे का संग्रहणीय संकलन होने के साथ-साथ जन की जागरूक मानसिकता का द्योतक है | पहले खंड ‘सफरनामा’ में संकलित डॉ. मधुर नज्मी का आलेख ‘शार्प है ‘शार्प रिपोर्टर’ का सफर’ जहाँ समाज के ज्वलंत मुद्दे उठानेवाले शार्प रिपोर्टर के कुछ अतिविशिष्ट अंकों पर प्रकाश डालता है वहीँ दूसरी ओर द्विदिवसीय मीडिया समग्र मंथन की जीवंत प्रस्तुति देता हुआ वीरेंद्र सिंह का आलेख ‘मरना जिसको आता है जीने का अधिकार उसी को’ है | संपादकीय  ‘दस साल पहले या दस साल बाद’ में मीडिया समग्र मंथन 2018 को लक्ष्य करते हुए अरविंद कुमार सिंह ने लिखा है, “यह जलसा दर्द और अभाव की रोशनाई से संघर्ष पथ पर लिखा गया है | अपमान और जलालत को झेलते हुए चलने का हुनर सीखा है |” एक दशक की इस संघर्षशीलता के साथ ही संघर्ष के उस क्षण में आत्मीय भाव से साथ निभाने और हौसला बढ़ाने वाले सच्चे सहयोगियों और मित्रों का अमिट स्मरण भी है इनका आलेख ‘संघर्ष का एक दशक’ |
उत्तरप्रदेश के ऐतिहासिक, भौगोलिक, राजनैतिक, प्रशासनिक और संवैधानिक ढाँचों के अतीत और वर्तमान स्थिति से रूबरू कराता हुआ खंड “सूबे का सच” में भाषिक परिदृश्य भी शामिल है जिसके तहत आधुनिक आर्यभाषाओं के वर्गीकरण के साथ हिंदी भाषा के विकास पर चर्चा की गई है | गाय और गंगा जो भारतीय संस्कृति में आस्था के दिव्य प्रतीक के रूप में उच्चासन पर विराजित हैं इनसे  संदर्भित आलेख में इनके संरक्षण पर बल दिया गया है जिससे मानव समाज भौतिक  और आध्यात्मिक उन्नति का अपना ध्येय साथ साथ साध सके | सांस्कृतिक-साहित्यिक समृद्धि के पश्चात् भी जो कराह यहाँ कायम है, वह क्यों है ? – सत्ता और राजनीतिकरण से आनेवाली खुशहाली और बदहाली जैसे तथ्यों से जुड़े आलेख बेबाक लहजे में लिखे गए हैं | समाजवादी आंदोलन जिसने युवा राजनीति को बदलाव का आधार बनाया, उसमें शीर्ष नेताओं (आचार्य नरेन्द्र देव, जयप्रकाश नारायण, डॉ. राम मनोहर लोहिया) का अवदान और उनकी भूमिका को चिन्हित करता हुआ आलेख एवं उत्तरप्रदेश की महत्वपूर्ण हस्तियों का कार्य-परिचयात्मक आलेख भी पत्रिका में शामिल है जिसमें उपेक्षित रहे राष्ट्र गौरव ‘सेनानी वीर चंद्र सिंह गढ़वाली’ को भी शामिल किया गया है | “महात्मा गाँधी ने गढ़वाली से प्रभावित होकर कहा था, “मुझे एक चंद्र सिंह गढ़वाली और मिलता तो भारत कभी का स्वतंत्र हो गया होता |” बैरिस्टर मुकुंदी लाल ने कहा था – “आजाद हिंद फ़ौज का बीज बोनेवाला वही है |” (पृ. 78) | समाजवादी आन्दोलन के दस्तावेज रूप में ‘नेहरु का लोहिया के नाम पत्र’ एवं व्यक्ति विशेष खंड के अंतर्गत गीतकार इंदीवर, विश्वबंधुत्व के समर्थक और अपना कर्तव्य निभाने को सदैव उद्द्यत रहनेवाले डॉ. श्रीनाथ सहाय, हिंदी साहित्य जगत को नई काव्य विधा ‘तेवरी’ देनेवाले प्रो. ऋषभदेव शर्मा के काव्य संसार पर केंद्रित है |
संतों, समाज सुधारकों और साहित्यकारों की गौरवशाली परंपरा वाले उत्तरप्रदेश की लोकसंस्कृति, लोकगाथाओं, लोकनृत्यों, लोकगीतों, रानी लक्ष्मीबाई की शौर्यगाथा, मल्ल कला के साथ ही राहुल सांकृत्यायन, स्व. शिवचरण सिंह, नामवर सिंह , कमलेश्वर, विवेकी राय, आदि कवि गुमानी पन्त, भारतीय साहित्य की अवधारणा, हिंदीतर क्षेत्र की पत्रकारिता , मीडिया विमर्श , उत्तराधुनिकता, आधुनिक हिंदी साहित्य, भोजपुरी साहित्य, ब्रजभाषा साहित्य, भक्तिकालीन साहित्य, सूफी दर्शन, विघटन-बिखराव (धर्म, भाषा, जाति) एवं रूहानियत के मर्म को उभारनेवाले तथ्यपरक और गवेषणात्मक आलेखों के संग्रहण वाली यह पत्रिका साहित्य, समाज और संस्कृति का उत्कृष्ट दस्तावेज है | उत्तरप्रदेश के साथ ही बुन्देलखण्ड और उत्तराखंड की जोरदार उपस्थिति यहाँ सुनिश्चित की गई है | यह राष्ट्र के हर्ष और आक्रोश का उद्गार होने के साथ ही राष्ट्र की ‘उन्नति और अवनति’ – ‘ऐश्वर्य और बदहाली’ की समशील दास्तान भी |         

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