साहित्य और संस्कृति

शनिवार, 23 नवंबर 2024

 

रामकथा सुंदर करतारी : RAM KATHA SUNDAR KARTARI (Hindi Edition) किंडल संस्करण

हिंदी संस्करण  इनके द्वारा CHANDAN KUMARI (Author)  फ़ॉर्मैट : किंडल संस्करण
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अनुक्रम

को रघुबीर सरिस संसारा
खंड 1: सीय राममय सब जग जानी
  1. श्रीराम वंशावली
  2. रघुनाथ का शील
  3. प्रीति पुरातन लखई न कोई
खंड 2 : रामकथा : संस्कृति और जीवन दर्शन
4. राम का तात्विक स्वरूप
5. आलवार संत कवियों की रचनाओं में राम
6. कृष्णभक्त कवियों की रचनाओं में रामकथा
7. वर्ण धर्म और भक्ति
8. रामचरितमानस में आदिवासी समाज
9. यातें पहिचानत हैं भूषन जे पाँय के
10.आस्था, आत्मोत्सर्ग और भाव संबंध
11. भारतीय संस्कृति के सूत्र
12. पर्यावरण चेतना
13. राम भक्ति के आलोक में दशानन चरित
14.नहुष चरित : जीवन का उत्थान-पतन
खंड 3: भगति तात अनुपम सुखमूला

15. सकल लोक जग पावनि गंगा
16. प्रगट प्रभाउ महेस प्रतापू
17. दुर्वासा धाम
18. सुनहु राम अब कहउँ निकेता
19. सो मम भगति भगत सुखदाई
20. सरनागत कहुँ जे तजहिं
21. जाके प्रिय न राम बैदेही
22. मानस रोग और निदान
23. अनुकरणीय व्यक्तित्व : तुलसीदास
खंड 4 : मंगल भवन अमंगल हारी

24. एक श्लोकी रामायण
25. अहल्या कृत श्रीराम स्तुति
26. परशुराम कृत श्रीराम स्तुति
27. अत्रि मुनि कृत श्रीराम स्तुति
28. सुतीक्ष्ण मुनि कृत श्रीराम स्तुति
29. जटायु कृत श्रीराम स्तुति
30. ब्रह्मा कृत श्रीराम स्तुति
31. इंद्र कृत श्रीराम स्तुति
32. त्रिपुरारि शिव कृत विनती स्वरूप श्रीराम स्तुति
33. वेद कृत श्रीराम स्तुति
34.शिव कृत श्रीराम स्तुति
श्रीराम विश्वपालक हैं अपने जग-मंगलकारी और लोकरक्षक स्वरूप में, वे भक्तवत्सल और निर्वैर हैं चराचर जगत पर अपने प्रेम रूपी मेघ की छाया करने वाले श्रीराम अपने अंशों के साथ देह धारण करके दशरथ और कौसल्या की गोद में, उनके आँगन में तरह-तरह से शिशुलीला करते हैं पढ़ने योग्य आयु होने पर वे भाइयों समेत गुरुकुल जाकर विद्याध्ययन करते हैं राजकुमार अपने राजसी वैभव और ठाठ को एकदम भूलकर गुरुकुल में अन्य शिष्यों की भाँति ही आश्रम के सभी कामों में अपनी सहभागिता देते हैं प्राचीन भारतीय गुरुकुल परंपरा के अंतर्गत गुरु अपने शिष्य को शास्त्र और शस्त्र विद्या का ज्ञान देने के साथ ही वे उन्हें जीवन जीने की कला और परिश्रम की महत्ता भी बताते थे यह गुरु द्वारा बोलकर नहीं सिखाया जाता था वरन शिष्यों द्वारा आश्रम के विभिन्न कार्यों में उनकी अपनी सहभागिता के द्वारा उन्हें स्वयं ही ज्ञात हो जाता था इस प्रकार उनमें कर्त्तव्य बोध और साहचर्य का भाव जागृत होता था
विद्या के आगार राम ने अपने इस मनुज अवतार में दिव्य शक्तियों और विद्याओं का अर्जन किया मारीच-सुबाहु-ताड़का के आतंक से त्रस्त ऋषि-मुनियों के उद्धार की कामना लेकर; महाराज दशरथ से उनके प्रिय राम-लक्ष्मण को माँगकर, महर्षि विश्वामित्र जब अयोध्या से चले तब राम के आचरण व गुणों से प्रभावित होकर, उन्होंने जान लिया कि ये कोई साधारण किशोर नहीं हैं उन्होंने अपने ईश को पहचान लिया और तब उन्होंने उन्हें कई दिव्य अस्त्र-शस्त्र प्रदान किए इन सभी को महर्षि विश्वामित्र ने अपने तपोबल से सिद्ध किया था श्रीराम को सुपात्र जानकर ही उन्होंने अपने दिव्य आयुध सहित दिव्य विद्याओं का ज्ञान भी उन्हें हर्षातिरेक से गदगद होकर प्रदान किया
“तब ऋषि निज नाथहि जिय चीन्ही विद्यानिधि कहुँ विद्या दीन्ही
जाते लाग न क्षुधा पिपासा अतुलित बल तनु तेज विलासा”
गुरु की कृपा की सुलभता के लिए सहजता और सरलता के साथ लोक हितकारी कर्मों का संपादन आवश्यक होता है धरती पर बहती गंगा, आसमान में उगते सूर्य और चारों दिशाओं में बहती हवा के समान जो लोकहित का साधक बने, जो यज्ञ की समिधा से प्रज्ज्वलित अग्नि के समान पवित्रता धारण करे और धरती के समान बिना गुण-दोष विचारे हर जीव को उनका स्थान देने के साथ आसमान के विस्तार-सी छाया सब पर रख सके निःसंदेह वह राम है अर्थात इन सब गुणों को जो एक साथ अपने आचरण में समाविष्ट कर सके वह श्रीराम हैं
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गुरुवार, 21 नवंबर 2024

 

 

कस्तूरबा कन्या महाविद्यालय भोपाल

दिनांक 20.11.2024 एवं 21.11.2024  को आयोजित कार्यक्रमों का प्रतिवेदन प्रकाशनार्थ प्रेषित

 

कस्तूरबा कन्या महाविद्यालय भोपाल में उच्च शिक्षा विभाग के निर्देशानुसार इस सप्ताह ‘भारतीय ज्ञान परंपरा’ पर आधारित विभिन्न गतिविधियों का द्वि-दिवसीय आयोजन किया गया| भाषण, निबंध, पोस्टर निर्माण प्रतियोगिता तथा सामान्य ज्ञान प्रतियोगिता में छात्राओं ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया| जोहा, जाकिरा, अलीशा, तोसीफ़ और काशिफा के द्वारा बनाए गए चित्रों को सराहा गया| अन्य गतिविधियों में जिकरा, सबाहत, नर्गिस, सुमैया, मुस्कान, सामिया, मुस्कान बानो, वजीना, शिवानी इत्यादि छात्राओं ने अच्छा प्रयास किया| भारतीय संस्कृति और परंपरा, भारतीय ज्ञान प्रणाली और नई शिक्षा नीति, तकनीकी शिक्षा एवं प्राचीन शिक्षा प्रणाली का महत्व इत्यादि विषय, इन गतिविधियों का मुख्य केंद्र बिंदु रहे| सामान्य ज्ञान प्रतियोगिता में भारतीय ज्ञान परंपरा से जुड़े महत्वपूर्ण प्रश्नों के साथ ही समसामयिकी को भी शामिल किया गया| पूरा कार्यक्रम भारतीय ज्ञान परंपरा पर केंद्रित रहा| इससे वैदिक काल से लेकर प्राचीन भारत की एक स्पष्ट छवि परिलक्षित होती हुई दिखी| प्राचीन भारत की विकसित ज्ञान प्रणाली के महत्व की चर्चा और उसके आत्मसातीकरण की आवश्यकता पर बल देते हुए कार्यक्रम की समाप्ति हुई| महाविद्यालय के इस द्वि-दिवसीय आयोजन में सभी सदस्यों का सहयोग रहा| 

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कहीं-न-कहीं याद आई दिनकर की बाल कविता ‘किसको नमन करूँ’ देखें –

“भारत नहीं स्थान का वाचक, गुण-विशेष नर का है,

एक देश का नहीं, शील यह भूमंडल-भर का है|

जहाँ कहीं एकता अखंडित, जहाँ प्रेम का स्वर है,

देश-देश में वहाँ खड़ा भारत जीवित भास्वर है!

निखिल विश्व की जन्मभूमि वंदन को नमन करूँ?

किसको नमन करूँ मैं भारत! किसको नमन करूँ?

 ...तुझको या तेरे नदीश, गिरि, वन को नमन करूँ मैं|”

                               

 

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